Sunday 29 December 2013

योग और रोग (२)

कल अचानक रस्ते मे मेरी पुरानी सहेली मिल गई ।इतने सालों बाद मिलकर  बडी खुशी हो रही थी । पर मैनें देखा कि वह ठीक से नही चल पा रही थी ।पूछने पर उसनें बताया कि वह घुटनों के दर्द से परेशान है ।जब मैने उसकी दिनचर्चा के बारे मे पूछा तो वह बोली खाना और सोना ।हर काम के लिए नौकर हैं ।और मुझे उसके दर्द का कारण समझ में आ गया व्यायाम की कमी  ।
   दूसरी तरफ हमारी कमलाबाई है जो दिन भर चककरघिन्नी की तरह काम करती है पर खान पान में कमी । वो भी इसी तरह के दर्द  की शिकार है ।
   नियमित व्यायाम का अभाव और संतुलित आहार की कमी के कारण शरीर में केल्शियम की कमी होने लगती है । शारीरिक प्रवृति का स्तर जैसे-जैसे कम होता जाता है वैसे-वैसे हड्डियाँ कमजोर होती जाती है ।
     ओसटियोपोरोसिस -यह शब्द दो शब्दों से बना है  ओस्टीयो यानी हड्डी और पोरस यानी छिद्र वाली होना ।पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह तकलीफ अधिक पाई जाती है ।
    जब हम कोई भी व्यायाम करते है जैसे चलना,दौडना या फिर कोई भी मेहनत का काम करते हैं तो हमारे स्नायु हड्डियों को काम करने को प्रेरित करते हैं और उन्हें मजबूत बनाते है  ।
     ,सूक्ष्मव्यायाम जिसमे कंधों ,गले, कलाई ,घुटनों आदी का परिभ्रमण, बटरफ्लाई आदि का अभ्यास करने से लाभ मिलता है । वज्रासन भी काफी लाभदायक है ।प्राणायाम का अभ्यास ,दूध ,दही का सेवन और मन की प्रसन्नता यही है सुखी जीवन का मंत्र ।

Friday 27 December 2013

बचपन

कौन कहता है कि बचपन ,
    फिर से लौट नहीं आता ।
     आज जब भी मैं खेलती हूँ
      अपनी "आन्या',के साथ,
      लगता है जैसे मुझे मिल गया,
        फिर से मेरा बचपन ।
     कभी दौड़ा-दौडी ,कभी पकडा-पकडी ,
      कभी गुड्डा-गुड्डी ,कभी खाना -वाना,
        कभी मुसकुराना, कभी खिलखिलाना ।
         लगता है जैसे वो बचपन मेरा,
       लो फिर आ गया है,
        मेरा हाथ थामे चला जा रहा है ।

नूतन वर्ष

नये वर्ष की नई सुबह में ,
   गीत नये ,संगीत नया,
      नई मंजिलें ,नये रास्ते ,
         आशा और उमंग नई ।
       सोच नई हो ,नये इरादे
      काम करें कुछ नये-नये  ।
     जो वादे किए थे हमनें स्वयं से ,वर्षो से पिछले कई ,
   कि हम ये करेगें ,या वो करेंगे
   करें उनको पूरा इस नूतन वर्ष में ।
   यही है कामना तहेदिल से मेरी ,
   आनेवाला ये नूतन वर्ष ,शुभ हो सभी को ।

     

Tuesday 24 December 2013

मुद्रा विज्ञान

हमारा शरीर पाँच तत्व से बना है । जो है -अग्नि,वायु, आकाश,पृथ्वी और जल । हमारी पाँचों उंगलियाँ इन तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं । जो इस प्रकार हैं-
     अंगूठा --- अग्नि
      तर्जनी ---वायु
       मध्यमा--- आकाश
        अनामिका--- पृथ्वी
         कनिष्ठिका ---जल
       हमारे हाथों में से एक विशेष प्रकार की उर्जा निरंतर निकलती रहती है । विभिन्न उँगलियों द्वारा की जाने वाली  मुद्राओं से शरीर में स्थित चेतना शक्ति केन्द्रों को जाग्रत किया जा सकता है ।
     पाँच तत्वों के संतुलन से हम स्वस्थ्य रह सकते हैं । मुद्रा दोनो हाथो से करनी चाहिए ।इन्हें करते समय उँगलियों और अंगूठे का स्पर्श सहज होना चाहिए । मुद्राएँ पंद्रह- पंद्रह मिनट
सुबह -शाम की जा सकती  हैं ।
     मुद्राओं के अभ्यास से व्यक्तित्व का विकास होता है ।ज्ञानमुद्रा,प्राणमुद्रा,पृथ्वी मुद्रा,कोई भी साधक इच्छानुसार कर सकता है ।बाकी की मुद्राएँ विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करनी चाहिये । यहाँ मैं कुछ प्रचलित मुद्राओं का विश्लेशण आवश्यक समझती हूँ ।

   
     
  
पृथ्वी मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर अनामिका की टोच लगाकार बाकी उँगलियोँ को सीधा रखने से बनती है । पृथ्वी तत्त्व की कमी से शारीरिक दुर्बलता को यह दूर करती है ।
आकाश मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर मध्यमा की टोच लगाकार बाकी की उँगलियों को सीधा रखने से बनती है । यह मुद्रा हड्डी संबंधी रोगों मे फायदेकारक है । मध्यमा का ह्रदय से संबंध होने से ,संबंधित रोग में फायदेकारक है ।
ज्ञान मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर तर्जनी की टोच यानी ऊपरी सिरा लगाकर बाकी कीउँगलियों को सीधा रखने से बनती है । यह मुद्रा मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को क्रियावान बनाती है ।अनिद्रा रोग के लिए तो यह रामबाण है ।

Saturday 21 December 2013

योग क्यों?

हमारी सोसायटी की महिलाओं का एक समूह चर्चा कर रहा था योग की । सभी योग क्लास मे जाते थे और इसी विषय पर चर्चा हो रही थी ।सभी अपने-अपने अनुभव एक दूसरे के साथ बाँट रहे थे । मैं भी उनमें शामिल हो गई और उनसे पूछा- आप लोग योग के लिए क्यों जाते हो?  किसी ने कहा आज कल सब जाते है इसलिए मैं भी जाती हूँ , तो किसी ने कहा टाइम पास करने के लिए ।उनके द्वारा दिए गए जवाबों  ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि जिस कार्य के लिए ये लोग जाते हैं उसके फायदों से तो बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। तो चलिए आज इसी विषय पर थोड़ी चर्चा करते हैं ।
    योगासन शरीर के सभी अंगों को  एकसाथ व्यायाम देते हैं  ।इसके तालबद्ध अभ्यास से शरीर के सभी अवयवों और ग्रन्थियों को कुदरती श्रम मिलता है और इनके आरोग्यवर्धक रस अधिक मात्रा में खून के साथ मिलते है जिससे शरीर तंदुरुस्त रहता है ।
      योगासनो के द्वारा मन की शांति मिलतीं है ।
      इनका नियमित अभ्यास से तन-मन की स्वस्थता व प्रसन्नता प्राप्त होती है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है ।

Friday 20 December 2013

रिश्ते

ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ।बचपन से लेकर अंत तक इंसान अलग -अलग रिश्तो से बँधा रहता है ।मेरे हिसाब से ये होतें हैं उडती पतंग की तरह । सबसे पहले तो इसके लिए मजबूत डोर की जरूरत पडती है और उसे मजबूत बनाने के लिए काँच का उपयोग किया जाता है ।और इसमें कितनी ही बार उँगलियों में घाव पड जाते है तब जाकर डोर पककी बनती है । ठीक इसी तरह हमारे रिश्ते होते हैं ।
  पतंग उडाने के लिए जितना महत्वपूर्ण उडाने वाला होता है उतना ही चकरी पकडने वाला भी होता है . अगर वह डोर को ठीक से नही लपेटेगा तो वह उलझ जाएगी और कितनी बार तो उसमें इतनी गाँठे पड जाती है कि उसे तोड ही देना पडता है । इसी तरह रिश्ते भी संभाल कर रखने पडते है  ।चाहे वो रिश्ता दोस्ती का हो,भाई-बहन का हो पति -पत्नी का हो या फिर कोई और ।कभीकभी नफरत, क्रोध ओर अहंकार रूपी माँझा  उसे काटने की कोशिश करते हैं  ।पर समझदारी और धैर्यपूर्वक चला जाए तो हम अपने रिश्तों की पतंग को दूर क्षितिज मे उडा सकते हैं ।
     आने वाले नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।

Sunday 8 December 2013

योग व रोग

हमारे शरीर में बाहर जितनी इन्द्रियाँकार्य करती हुई दिखाई देती हैं उससे अनेक गुना अधिक कार्य बाहर से न दिखाई देने वाली ग्रन्थियाँ करती हैं । जिनमें से एक मुख्य है थायरोइड । पिछले कई वर्षों में इसके विकारों से होने वाले रोगों की जानकारी मिली है ।
      यह ग्रंथि गले में तितली के आकार की होती है । हम जो भी खुराक लेते हैं उसमें से आयोडीन तत्व खून की सहायता से थायराइड ग्रंथि में पहुँचता है और इस आयोडीन में से थायराइड ग्रंथि टी३औरटी४ नामक हारमोंस बनाती  है । ये हारमोंस शरीर के अलग-अलग अवयवों में भ्रमण करते हैं और शरीर की चयापचय क्रिया को वेग देतें हैं और फिर इन सब अवयवों और उनके साथ जुडे हुए टिश्यु और मेटाबोलिज्म कार्यशील होते है । जब शरीर की मेटाबोलिक क्रियाएँ  ज्यादा काम करती हैं तो ये अंत:स्त्राव शरीर में कम होते हैं और तब इन क्रियाओ का संतुलन बनाएँ रखने का काम थायराइड ग्रंथि करती है ।
         जब यह ग्रंथि कम कार्य करती हैं तब उसे हाइपोथायराइडिज्म कहते हैं पर अगर ये अधिक काम करें तो हाइपरथाइरोडिजम  कहते है ।
  इस स्थिति मे सम्बन्धित व्यक्ति आलस का अनुभव करता है,शरीर पर,विशेषत:आँख के नीचे सूजन आ जाती है । वजन घटता-बढता रहता है । आवाज़ भारी हो जाती है किसी काम मे रूचि नही रहती यहाॅं तक व्यक्ति डीप्रेशन का शिकार भी हो जाता है । अगर ये सब लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त जाँच करवानी चाहिए ।   
    योग द्वारा कुछ हद तक थायराइड ग्रन्थिकी विशिष्ट क्षमता को जाग्रत किया जा सकता है । इसमे सर्वांगासन ,मत्स्यासन,हलासन शवासन का अभ्यास करना चाहिए । प्राणायाम में भ्रामरी, ऊँकार तथा ऊजजयी का अभ्यास लाभदायक है ।
  साथ ही सूर्य मुद्रा के अभ्यास से थायराइड ग्रन्थि के पोइंट दबने से उसके स्रावो का संतुलन होता है ।

Thursday 5 December 2013

मेरे अनुभव

आज सुबह जब मै नाश्ता करने लगी तो खाते समय एक बाल न जाने कहाँ से आ गया और गले में फँस गया जब तक निकला नही तब तक भारी बैचेनी । खाया हुआ सब बाहर आ रहा था ,निकलने के बाद मैने चैन की साँस ली ।
     मेरे मन मेँ यही प्रश्न उठा इतने बडे शरीर मे इतना सा बाल सहन नही होता ।हमारे शरीर की यही प्रकृति है कि अनचाही चीज तुरंत बाहर धकेलता है  । छोटा सा काँटा चुभता है,वो जब तक निकल नहीं जाता ,हमें चैन नही पडता ।
    पर हमारे मन का क्या ? वो तो छोटी -बडी सभी बातों को  अपने  अंदर संग्रह करके रखता है .छोटी -छोटी बातोँ में क्रोध या दुख की भावनाओं को हमारा मन वर्षो तक सहेज कर रखता है और इस तरह हम जाने-अनजाने अपने स्वाथ्य को हानि पहुँचाते हैं । दुख और क्रोध की जो गाँठ हम बाँधते हैं उससे तरह -तरह की बिमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
       क्रोध हमारे मन को विकृत बना देता है ।
    हम अपने नकारात्मक विचारों से ,बिमारी अथवा बिगडे हुए संबंध से परेशान रहते हैं ।तो चलिये आज से ही शुरुआत करते है   । जो विचार हमने बरसों से पकड कर रखें हैं उन्हें छोडकर नई विचारधारा अपनाएँ ।हमारे जीवन में जो अशांति होती है वो हमारी स्वयं की मानसिक विचारधारा पर आधारित होती है तो हम अपनी विचारधारा की रीत बदले ,उन्हें सकारात्मकता की ओर ले चले  ।

Sunday 1 December 2013

मेरी सहेलियां

मै,खुशी,मुस्कान और हँसी बचपन की सहेलियां हैं । हमेशा साथ-साथ ।जाहिर है जहाँ खुशी है वहाँ हँसी और मुस्कान तो होंगे ही । इन दोनो के साथ बचपन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला । इस बीच एक नई सहेली से मुलाकात हुई जिसका नाम है चिंता । इतनी चिपकू है कि पीछा ही नही छोडती अकसर रात को आ धमकती है  और फिर सोने भी नही देती । इससे लाख बचना चाहो किसी न किसी बहाने से आ ही जाती है । इसके आते ही मेरी दोनो पुरानी सहेलियाँ तो भाग ही जाती हैं पर मै नही भाग पाती क्योंकि इसकी पकड़ जो इतनी मजबूत है । जब भी ये आती साथ अपने साथियो -सिरदर्द,डिप्रेशन आदि को लेकर ही आती है ।
  कल ही मैने अपनी पुरानी सहेलियों को याद किया तो वे बोली-जबतक ये चिंता है हम कैसे आएं । मैने भी निश्चय कर लिया कि इसे अब भगाना ही होगा ताकि मुझे अपनी पुरानी सहेलियाँ फिर से मिल सके और जीवन का सच्चा आनन्द मिले ।