Monday 22 December 2014

तितलियाँ

खुले पैर बागीचे में दौडना ,
       तितलियों के पीछे,
     उन्हें पकड़ना  ,पर तोड़ देना
   कभी सोचा न था ,क्या गुजरेगी उन पर ।
     आज भी याद है माँ की वो बात ,
   " क्यों पकड़ती हो इन निरीह तितलियों को ,
     काश ,होती ज़ुबाँ इनके भी ,
      बयाँ कर सकती वो दास्ताँ अपनी " ।
       हुआ अब ये अहसास ,
     जब देखती हूँ, सुनती हूँ ,
      न जाने कितनी मासूम तितलियों को,
      पकड़े जाते हुए ,कुचले जाते हुए  ,
     दिल भर जाता है ,रोने को आता है ,
      मन करता है चीखने को ,
    कोशिश करती हूँ ,गला रुंध जाता है ।
      पर अब हिम्मत जुटानी होगी ,
      आवाज उठानी होगी ,
     चलना होगा मिल कर साथ ,
    ताकि,कोई तितली न खोए ,फिर रंगो को ।
       कितने रंग भरती हें ,जीवन में ये  ,
      उड़ती हुई ही अच्छी लगती है ये ।

    

Sunday 14 December 2014

वाह ,चाय

कल का दिन यानि 15 दिसबर अन्तराष्ट्रीय चाय दिवस के रूप में मनाया जाने वाला है ।  कल दसवां अन्तराष्ट्रीय चाय दिवस है । सभी चाय प्रेमियों को बधाई ।  
     वाह,सुबह-सुबह की पहली चाय का मज़ा ही कुछ और है  ।आराम से बैठ कर धीरे-धीरे चाय की खुशबू का आनंद लेते हुए  चुस्कियाँ लेना ।
    अगर आप भी मेरी तरह चाय प्रेमी हैं तो आपको भी इतना ही मज़ा आता होगा ।
     चाय भारत का सबसे मशहूर पेय है । इसे बनाने का तरीका सबका अलग-अलग हो सकता है ।कोई अदरक वाली तो कोई मसाले वाली या फिर कोई इलाइची वाली चाय पसंद करते हैं ,तो किसी को बिना कुछ डाले सिर्फ चाय का फ्लेवर अच्छा लगता है । जब सर्दी -जुखाम होता है तब चाय पीने से बड़ा आराम मिलता है ।जब हम कभी उदास होते हैं तब एक कप चाय का हमें आनंद देता है ।
    आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने से कई प्रकार की 'healthy tea' बाजार में उपलब्ध है जैसे कई फ्लेवर्स में ग्रीन टी ,हर्बल  टी आदि ।
      मेरा ये लेख सभी चाय प्रेमियों को समर्पित है । so cheers with Tea .. .
    हाँ,ध्यान रहे अति सर्वत्र वर्जितः ।

Saturday 13 December 2014

घर

  मेरा घर ,प्यारा घर ,
         छोटा ही सही  ,एक सुंदर  घर ,
     दौड़ती हूँ जहाँ मैं इधर-उधर  ,
      देखती हूँ झरोखे से उन्मुक्त गगन ।
       करती हूँ उसका खूब जतन 
      एक ओर टिमटिमाता दिया ,
     भीनी सी खुशबू स्नेह भरी ।
     वो गमलों से आती मिट्टी की सौंधास,
       खिले हुए हैं फूल गुलाब ,मोगरा ,जूही ,
     वो बेल चमेली की है मेरी सहेली ,
       वो फूल सूरजमुखी का
       दिलाता है अहसास सूर्योदय का
     महक जाता  है  जिनसे मेरा घर संसार ।
     
     
 

एकाग्रता और ध्यान

ध्यान का शब्दिक अर्थ है -किसी भी काम को मन लगा के करना । बचपन में स्कूल में शिक्षक कहते थे "ध्यान से सुनो" ,या हम जब भी कोई काम सीखते हैं तब सिखाने वाले कहते हैं-ध्यान से देखो ---यानि इसका अर्थ यही हैं कि किसी भी काम को एकाग्रता से करना
      मैंने अक्सर देखा है जब भी कोई व्यक्ति अपनी पसंद का काम करता है तो उसमे पूरी तरह डूब जाता है जैसे राधा जब रोटी बनाती है तो इतने ध्यान से गोल-गोल ,छोटी छोटी बनाती है  उसका ध्यान इसी में रहता है की सभी रोटियां एक ही आकार की बने और उस समय अगर कोई उसे बुलाये तो कम से कम तीन -चार बार आवाज देनी पड़ती है । इसी तरह रमा जब पेंटिंग करती है और विभा गाने का अभ्यास करती है तब उनका भी यही हाल होता है ,उन्हे आसपास की सुधबुध नहीं रहती ।
     तो आप इन सबको क्या कहेंगे ?मेरे हिसाब से ये ध्यान की और जाने का पहला कदम है ।
   जब भी कोई इतनी तल्लीनता से काम करता है तब विचार आने स्वतः ही कम हो जाते हैं ,मन शांत और प्रसन्न हो जाता है ।
    इससे थोडा आगे बढ़कर देखें तो "ध्यान" योग का आठवां अंग है । इसके अभ्यास से शरीर और मन दोनों के कष्ट कम हो जाते हैं ।
  लेकिन सिर्फ आँख बंद करके बैठना ध्यान नही है ।बहुत से गुरु अलग -अलग शिविरों में ध्यान की तकनीक सिखाते हैं ,जैसे 100 से 1 तक उलटी गिनती गिनो ।  शायद ऐसा करने से व्यक्ति उसी में तल्लीन हो जाता होगा और अन्य विचार कम आते होंगे ।
  धीरे धीरे अभ्यास से हम अपने मन और मस्तिष्क की अनावश्यक कल्पनाओं को कम कर सकते हैं ।
    ध्यान हमारे शारीर ,मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है  ।इससे मन और शरीर को अप्रतिम ऊर्जा मिलती है   ।
     

Friday 5 December 2014

जीवन की मुस्कान

जब भी  तुम गलियों से गुजरो ,अपने चेहरे पर मुस्कान ओढ़ लो ,और देखो कितने लोग पलट कर मुस्कुराते है ।
     मुस्कुराओ,मुस्कुराओ तुम्हारी मुस्कराहट तनाव को कम करेगी ।
    ये सब  बातें पढ़ने और सुनने में कितनी अच्छी लगती हैं पर क्या वाकई में हम ऐसा करते हैं ,नहीं ना ।
      आजकल जिसे देखो वह तनाव ग्रस्त रहता है ।  प्रेशर -प्रेशर , बस सभी को किसी न किसी चीज का तनाव  ।  नौकरी में तनाव ,व्यवसाय में तनाव, विद्यार्थी की पढाई का तनाव यहाँ तक आज कल छोटे-छोटे बच्चे भी तनाव ग्रस्त रहते हैं । पुस्तकों  का बोझ उठाते -उठाते न जाने उनका बचपन कहाँ खो जाता है । और फिर दसवीं तक पहुँचते-पहुँचते बच्चे इतने तनावग्रस्त हो जाते हैं कि कई बार उन्हें मनोचकित्सक के पास ले जाना पड़ता है ।
        वास्तव में ख़ुशी है क्या?
    ये तो हमारे  अन्तर मन की प्रेरणा है ।जिसे हम अपनी भौतिक सुख सुविधाऒ को जुटानें और जिम्मेदारियों  को निभानें में खोते जा रहे हैं ,और फिर दोष देते हैं परिस्थितियों को या फिर  लोगों को । सोचतें हैं के शायद ऐसा होता तो ज्यादा मज़ा आता या  वैसा होता तो हम अधिक खुश होते  । फिर धीरे धीरे  ये हमारी आदत बन जाती है कि सामने आई ख़ुशी हमे नज़र ही नहीं आती ।
  वैसे अधिकतर लोग ज़िन्दगी को पूरी तरह जी ही नहीं पाते        क्योंकि हम अपने दिमाग को भी कुछ हदों में बांध लेते हैं और हर चीज़ की उसी तरह देखना चाहते हैं जैसा दिमाग में सेट किया होता है ,अगर हमारे माइंड सेट से कुछ अलग हुआ तो उसे स्वीकार नहीं कर पाते और फिर सिलसिला शुरू होता है तनाव , डिप्रेशन का ।
    याद कीजिये बचपन में जब छोटी चॉकलेट मिलती थी तो हम कितने खुश ही जाते थे  ,मानो दुनियां भर की खुशियाँ मिल गई हों  । तो फिर देर कैसी ?  जीवन को देखना शुरू कीजिए बच्चे के मन से ,जीने का थोडा सा तरीका बदलिये बस फिर खुशियाँ आपकी झोली में ।
    ये तो आपके मन में ही है ,टोर्च लेकर इधर -उधर मत ढूँढिये ।

 
     
  

Saturday 15 November 2014

संस्मरण

कभी -कभी सोचती हूँ  कि वो कौन सी शक्ति है जो जगत को चलाती है ? वैसे आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है के इंसान जो चाहे कर सकता है ,फिर भी जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते है कि हम सोचने  पर मजबूर हो जाते है कि कोई तो शक्ति मौजूद है ।
    बात उन दिनों की है जब हम पोरबंदर में रहते थे। हमारे घर कुछ मेहमान आये हुए थे ।  उनको वहां से कुछ चीजे खरीदनी थी तो करीब शाम को चार बजे उन्हें लेकर मैं बाजार गई ।जहाँ से उन्हें खरीदारी करनी थी वो एक छोटी सी गली थी । मै उन्हें लेकर उस गली में घुसी ही थी  कि अचानक सामने से दो सांड न जाने कहाँ से दौड़ते हुए आये और दोनो तरफ से मुझे घेर लिया ।हम तीन लोग थे , पर  मैं  बुरी तरह से उनकी चपेट में आ चुकी थी  चारों तरफ भीड़ जमा ही गई । किसी में हिम्मत नहीं थी के उन सांडों को हटा सके ।दूसरी तरफ उन्होंने अपने सींगों में उठा-उठा कर मुझे फुटबॉल की तरह उछलना शुरू कर दिया लगभग छे-सात बार , और अपने नुकीले सींगों से  प्रहार शुरू कर दिए ।  मुझे तो साक्षात् मौत के दर्शन हो रहे थे । लोग अभी भी चिल्ला रहे थे । लेकिन कोई मदद नहीं ।
      अचानक कुछ देर के बाद अपने आप ही वे शांत होकर चले गए । मैं अपने आप उठी और अपनी चप्पलें  ढूँढने लगी । लोग बातें करने लगे  कि कुछ दिनों पहले भी एक भाई के साथ ऐसा ही हुआ था ,पर वो बच नहीँ पाए ।
   मुझे अभी तक कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हुआ कया ?
   हमारे मेहमान मुझे सीधे अस्पताल ले गए ।मेरे घर पर भी उन्होंने सूचना दे दी ।सब लोग बड़े चिंतित हो गए । जिस तरह की घटना थी सब यही कल्पना कर रहे थे की क्या हाल होगा मेरा ।
     लेकिन क्या बताऊँ मैं आपको इतना होने के बाद भी एक भी खरोंच  नहीं आई  ।
    अब इसे मै क्या कहूँ ये आप ही बताइये ।

  

Friday 14 November 2014

स्वास्थ्य और संगीत

करताल के साथ कीर्तन हो या कव्वाली की महफ़िल,शास्त्रीय संगीत हो या सुगम संगीत की मधुर सुरावली ,फ़िल्म का कोई दर्दभरा गाना हो _संगीत सभी को अच्छा लगता है ,इसका जादू है ही ऐसा ।
    बहते झरने का कलकल ,कोयल की मधुर आवाज,वर्षा ऋतु में मोर की मधुर ध्वनि ,समुद्र से उठते मौजौ की  आवाज ये सब संगीत ही तो है ।सुरीला मधुर संगीत सभी के मन को आनंदित कर देता है ,अप्रतिम शांति प्रदान करता है ।
   इसके विपरीत लय बिना की आवाज ,शोरगुल शरीर के लिए नुकसानदायक होता है । इस प्रकर का संगीत शरीर को अनेक प्रकार से नुकसान पहुंचता है । अगर हम अपने हृदय  की धड़कन की ध्यान से सुने तो क्रमशः एक -दो -तीन आवाज सुनाई देती है  इसी प्रकार लय-ताल में अगर संगीत बजता हो वो हमरे अन्तर्मन् को स्पर्श करता है और एक अदभुत आनंद की अनुभूति होती है ।

     जब कभी हमारा मूड खराब हो,मन बैचेन हो,कुछ करना अच्छा न लगता हो तब कोई भी पसंदीदा गीत सुनने से मन का ,उद्वेग शांत हो जाता है ।
   तो चलिए अपने जीवन को संगीतमय बनाये और जीवन को और मधुर बनाएं ।

Wednesday 24 September 2014

चक्कर लाइक का

आजकल फेस-बुक ,वाटस एप का भूत सभी पर इस कदर चढ़ा हुआ है कि पूछिये मत । अरे
कल तो मेरे सामने ही एक भाई खडडे में जा गिरे  और हाथ -पैर तुड़ा बैठे ।वो बड़ी तल्लीनता से फोटो देख रहे थे फेस बुक पर ।
       अगर कोई  फेस बुक पर नही होता तो भैया वो तो एकदम पिछड़ा हुआ समझा जाता है ।हमनें भी सोचा भला हम भी क्यों पीछे रहें ,तो बना डाला अपना प्रोफाइल और आ गए फेसबुक पर । और भैया तब पता चला कि हम क्या  मिस कर रहे थे । दो दिन में तो इतने मित्र बन गए जितने हम अपनी पचास साल की उम्र में नहीं बना पाए थे ।
    हमनें भी आनन -फानन डाल दिये अपने बहुत सारे फोटो ,और रोज यही देखते कि कितने लोगों ने लाइक किया ।अब तो हमारा अधिकांश समय इसी में गुजरने लगा ।
     और ये लाइक का चककर बड़ा गजब का है । एक दिन हमनें देखा किसी की मृत्यु की खबर थी भाई , बीस लाइक । अब इससे अधिक और कया कहें ।
     खैर अब तो हमें भी इसका चस्का लग चुका था ।सोचा चलो हम अपने लेखन का शौक भी यहां पूरा कर सकते हैं सो बन गए" ब्लौगर " ।
    एक सप्ताह में दो-तीन रचनाएँ पोस्ट कर दी ।अब हमारा पूरा ध्यान लाइकस देखने में ही लगा था । पहली रचना पर ही सात लाइकस । मारे खुशी के खुद ही फूले जा रहे थे ।हमनें सोचा चलो इन मित्रों को फोन करके ही धन्यवाद देतें है । हमने फोन किया और धन्यवाद दिया ,पर सामने से जवाब आया -"अरे वो तो तुम्हारा नाम देखकर ही लाइक कर दिया ,वरना पढता कौन है " । हम तो जवाब सुन कर सन्न रह गये अब इतनी हिम्मत शेष नहीं थी कि किसी और को फोन किया जाए ।
     पर हम भी लिखना छोडेंगे  नहीं कभी न कभी तो सही में "लाइक " मिलेगा ।वैसे आप भी कर सकते हैं लाइक ।

Wednesday 23 July 2014

मन

उड़ चल रे मन ,
      कर ले उन सपनों को पूरा ,
     बुने थे जो तूने कभी ।
     मत देख आसमाँ को ,
     बंद कमरे की खिड़की से ,
     चल, बाहर निकल और 
    देख खुले आसमाँ को
  तोड़ दे सीमाओं की जंजीरों को , 
    चल निकल ,कर ले कुछ स्वपन तो पूरे ।
     न लड़ इच्छाओं से , बस लड़ ले बाधाओं से
      आगे बढ ,बढता चल ,बढता चल ।
     

Tuesday 22 July 2014

योगा वॉक

कहते हैं न कि चलना सबसे अच्छी कसरत है ।
    आज मैं बात कर रही हूँ योगा-वॉक की ।  इस पद्धति के द्वारा न केवल शारीरिक  अपितु मानसिक स्वस्थता  भी प्राप्त की जा सकती है ।
   शुरुआत तेज चलने से करें । फिर सोचें -
     आज किस बात पर गुस्सा किया ,फिर उसे जमीन में दफना दो ,पैरों से कुचल दो । स्वयं को गुस्से से मुक्त कर दो ।
     चलते  समय अपने दुख को बाहर करें  ।
     कंधों को घुमाइये ,इससें कंघों की अकङन कम होगी ।
     धरती मॉ को धन्यवाद दे ।
      किसी को सकारात्मक वाक्य कहें ।
        इससे खुशी, मानसिक शांति और एनर्जी मिलती है ।
    अपने आप को अच्छा स्वस्थ्य  दे ,अपने  स्वस्थ्य के मालिक स्वयं बनें ।

    
    

Wednesday 9 July 2014

लघु कथा

वह दर्द से कराह रही थी । हाथ में इतनी जलन थी कि सहन नहीं हो रही थी । रसोई में मॉ की मदद करते समय गरम पानी उसके हाथपर गिर गया था । दर्द के मारे उसकी चीख निकल गई ।मॉ ने आँख दिखाई "आवाज नहीं' । आंसूआँखों में ही रह गए । मॉ हर समय यही कहती  ज्यादा बोलना नहीं, जोर से बोलना नही । अरे इतने दर्द में भी आवाज नही ।
     वह समझ नहीं पाती अभी दस साल की ही तो थी । स्कूल में टीचर कहती कयों किसी बात का जवाब नहीं देतीं । उसे कुछ समझ नहीं आता कया करे ? आज टीचर ने मौलिक अधिकारो के बारे में बताया था । वह अपने कमरे में आकर पढनें लगी -स्वतंत्रता का अधिकार - हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार  ....... ।
      आँसूउसके गालों पर लुढ़क रहे थे ।

....
    

Wednesday 2 July 2014

शरीर में मनोभावों का संग्रह

कहते हैं न कि जैसा मन वैसा तन  अर्थात शरीर और मन की स्वस्थता एक दूसरे पर निर्भर हैं ।जैसे हमारे विचार व भावनाएं होगी तदनुरूप ही हमारे शरीर का गठबंधन होगा । सकारात्मक विचार व भावनाएं  शरीर को नरम और स्वस्थ बनाकर आकषर्ण प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक विचार और भावनाएं इसे संकुचित करके कठोरता प्रदान करते हैं ।
       हमारे शरीर का हर एक अंग अलग-अलग विचारों और भावनाओं को प्रदर्शित करता है जैसे शरीर का आगे के भाग से क्रोध, आभार ,दुख, प्रेम,आनंद,इर्ष्याआदि भावों का प्रतिबिम्ब पड़ता है ।
       हम जिन प्रश्नों को छुपाना चाहते है या उनका निवारण न चाहते हों ऐसी सभी भावनाओं  का संग्रह शारीर के पिछले भाग में होता हैं ।
      नाक सुगंध की पहचान करने वाले भावों को दर्शाता है ।इसका सीधा संबंध ह्रदय के साथ होता है ।
      गरदन पर विचारों और भावनाओं का दबाव पडने से वह अकड जाती है । 
    शरीर में रोग होने के मुख्य मानसिक कारण है -निंदा, गुस्सा, रोष आदि ।
     जीवन में जो अच्छा है अथवा अशांति है दोनों ही हमारी मानसिक विचारधारा पर आधारित हैं । इसलिये हमें चाहिए कि नकारात्मक विचारों को छोड़कर नये विचारों को अपनाएं । और इस सकारात्मकता की सरल पद्धति को अपना कर स्वस्थ रहे ।
    

Saturday 21 June 2014

आनन्द

सकारात्मक सोच का हमारे स्वास्थ्य के साथ घनिष्ठ संबंध है । पर कुछ शब्द हमारे  जीवन में ऐसे  घुस गए है और हमारी सकारात्मकता में बाधक बन जाते हैं ।
       आज मैं बात करूँगी उस शब्द की जिसका उपयोग जाने-अनजाने में दिन भर में कितनी ही बार करते हैं -बोर होना अथवा मन न लगना । और ये शब्द हमें ले जाता है नकारात्मक सोच की तरफ ।

  बड़े तो बड़े ,छोटे-छोटे बच्चे भी कहते सुनें जाते हैं कि हम 'बोर' हो रहे है ।(शायद  उन्हें इस शब्द का अर्थ भी मालूम नहीं होगा ) ।
        कितनी बार तो हम पहले से ही मन में सोच बना लेते है ,कि इस जगह अथवा काम में 
मजा  नहीं आएगा । और इस  तरह हम स्वयं तो परेशान ,उदास रहते ही है ,साथ वालों को भी परेशान कर देते है ।
     कुछ लोग होते है जो अपनी उपस्थिति से वातावरण को खुशहाल बना देते हैं । ऐसे लोगों का साथ सबको अच्छा लगता है । ऐसे लोग जिदंगी को खुल कर जीते है ।पर कुछ लोग जिदंगी का आनंद नहीं उठाते ।हर समय चिंता ,परेशानी से घिरे हुए ।
      अरे ,जिंदगी एक बार मिली है हँस-खेल कर गुजारें और 'बोर होना 'शब्द को तो  जीवन से निकाल ही दीजिए ।
     enjoy ur life .

Thursday 5 June 2014

पर्यावरण दिवस

हर साल आज के दिन यानी पाँच जून को विश्व पयार्वरण दिवस के रूप में मनाया जाता है । वो शायद इसलिये कि सदियों से हम पृथ्वी के द्वारा दिए गए अनमोल उपहारों -पेड़-पौधे नदियाँ, जंगल आदि का दुरुपयोग करते है ,तो हमें याद दिलाने के लिए कि हम अपनी धरती माँ की अच्छी तरह देखभाल करें ।
      हम केवल कहते है कि धरती माँ तुझे प्रणाम ,पर क्या सही अर्थ में हम धरती माँ का आदर करते हैं ,शायद नहीं ।
     हम तो इसे गंदा करने की जैसे होड में लगे हैं । नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है ,जंगल कम हो रहे है  ।
        आओ आज संकल्प करें ,पर्यावरण की रक्षा करें ।अपनी धरती माँ की अच्छी देखभाल करें ।अधिक पेड़ लगाएं ।क्योंकि -
      बूंद-बूंद पानी की है अनमोल ,पत्ती-पत्ती वृक्षों की है अनमोल ।
       

Thursday 29 May 2014

योग व स्वस्थ्य

अस्थमा रोग में सूर्यनमस्कार के लाभ -
       सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास से  श्वसन क्रिया की कार्य क्षमता बढ जाती है   ,और अस्थमा के हमले पर नियंत्रण किया जा सकता है ।और क्रमश: इसके निरंतर अभ्यास से इसे जडमूल से मिटाया जा सकता है ।
      इसके अभ्यास से श्वसननलियाँ विकसित होकर विपुल मात्रा मे प्राणवायु अंदर लेती हैं जिससे छोटी से छोटी रक्त वाहक कोशिकाएं श्वसन कार्य खूब अच्छी तरह से कर सकती हैं ।
  सूर्यनमस्कार की क्रिया में बारह विविध स्थितियां आती हैं  और हर एक स्थिति में सूर्य के बारह नामों में से एक का उच्चारण किया जाता है ।एक नमस्कार मे क्रमश: नमस्कारासन,पर्वतासन,हस्तापदासन,एकपादप्रसरणासन,भूधरासन,अष्टांगप्रणिपातासन,भुजंगासन, भूधरासन,एकपादप्रसरणासन,हस्तपादासन व नमस्कारासन किये जाते है ।
     इसका अभ्यास जानकार के निर्देशन में ही करना चाहिए

सत्संग

सत्संग ,वैसे तो इस शब्द में ही अर्थ छुपा हैं ।सरल भाषा में अगर कहें तो अच्छी सगंत । वो कहते है न कि जैसा संग वैसा रंग । अगर लोहे को कुछ समय के लिए चुंबक के पास रखा जाए तो उसमें भी चुंबकत्व आनें  लगता है । एक सडा हुआ फल अपने पास रखे सभी फलों को सडा देता है ।
   जब दो या अधिक व्यक्ति एक साथ कुछ समय बिताते हैं तो धीरे-धीरे उन पर एक दूसरे की आदतों का असर होने लगता है । क्योंकि जब बार-बार एक ही व्यक्तिसे मिलना होता है तब प्राण,श्वास का आदान -प्रदानहोता है  और हमारी "औरा' के रंग में परिवर्तन दिखाई देता है जैसे पीला जब नीले से मिलता है तो हरा रंग बनता है ,और यही पीला जब काले रंग से मिलता है तो भूरा बन जाता है । कहने का अर्थ यह है कि संगत का असर पडने लगता है ।
  अब मैं बात करना चाहूँगी उस सतसंग की जो अधिकतर महिलाएं अपने मोहल्लों अथवा सोसायटी में करती हैं  जिसमें एक -आध घंटे सकारात्मक विचारों  ,अच्छे व्यवहार आदि पर विचार व्यक्त किए जाते है ।लेकिन उनका असर कितने लोगो पर होता है ?जैसे ही बाहर निकले वही सास-बहू के किस्से या बुराई अभियान शुरू ।  
       इसीलिए हमेशा दूसरों के प्रति आदर भाव रखे ,अपना काम प्रामाणिकता से करें  यही सच्चा सतसंग है

  

Thursday 22 May 2014

अनुभव

जब वह डाक्टर के पास पहुँचा तो देखा बड़ी लम्बी कतार थी ।पर उसनें तो समय लिया था फिर भी अभी तक उसका नंबर नही आया था ।उसके पास इंतजार करने के सिवाय कोई चारा नहीं था । पिछले कई दिनों से वह सिर दर्द ,पैरों में दर्द ,पेट की तकलीफ से परेशान था  ।
       आज यहाँ बैठे-बैठे उसे माँ की बातें याद आ रही थी ।वह अक्सर कहती थी बेटा शरीर का ध्यान रखा करो ,थोडा चला करो ,कुछ व्यायाम,योगा किया करो ।और मैं कहता कि तुम नही समझोगी  काम ही इतना होता है ,कितना स्ट्रेस होता है इन सब चीजों के लिए कहाँ समय होता है  ।तब माँ कहती  "बेटा, अभी कुछ समय निकालोगे तो जिदंगी में स्वस्थ्य रहोगे ' पर उस समय मैंने उनकी बातों पर ध्यान ही दिया । माँ हमेशा यही कहती कि अगर तुम्हारा स्वास्थय अच्छा रहेगा तो हर काम अच्छी तरह से कर पाओगे ।
       और तभी उसका नंबर आ गया । डाकटर साहब ने जाँच कर तरह -तरह की दवाइयाँ दी और साथ में ढेरों हिदायतें ।
     उसने तो निश्चय कर लिया कि कल से ही सुबह जल्दी उठकर थोड़ा चलना है फिर थोड़ा योगा,व्यायाम आदि । माँ सच ही कहतीं थी
सच ही है पहला सुख निरोगी काया ।
   तो आप कब से शुरू कर रहे हैं ।
    

Saturday 10 May 2014

माँ

ऐ माँ तू कितनी अच्छी है ...प्यारी-प्यारी है ।
   माँ तो होती ही ऐसी है ।इस सृष्टि का सबसे अद्भुत ,सुंदर रूप  ।
    माँ तो वो होती है जो खुद गीले में सोकर अपने बच्चे को सूखी जगह पर सुलाती है ,बीमार होने पर रात-रात भर जागती है । आज भले ही डाइपर और रेडीमेड खाने के जमाने में माँ को गीले में नहीं सोना पड़ता पर माँ तो माँ ही होती है । आज के इस स्पर्धात्मक समय में बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के लिए  उसे दोहरी जिममेदारी निभानी पडती है  । वह घर और नौकरी अथवा व्यवसाय दोनों जिममेदारीयों को बखूबी निभाती है
       धन्य है माँ ।
      happy mother's day.

Monday 28 April 2014

योग और नृत्य

कल यानी उनतीस अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाएगा ।
तो चलिये आज हम भी इस बारे में कुछ बात करते हैं ।
     शब्दार्थ की दृष्टि से देखें तो योग अर्थात जोडना होता है और तात्विक दृष्टि से योग अर्थात परमतत्व से मिल जाना ।इसी प्रकार नृत्य का उद्देश्य भी लगभग योग जैसा ही है ।
   भारत में रंगमंच पर आने से पूर्व सभी प्रकार के नृत्य मंदिरों में ईश्वर भक्ति के स्वरूप में ही प्रस्तुत किए जाते थे ।
     नृत्य में गुरु और प्रार्थना का जितना महत्व है ,योग में भी उतना ही है । जिस प्रकार नृत्य में  सिर,गर्दन, आँख, हाथ आदि अंगों का उपयोग  विविध प्रकार से किया जाता है उसी प्रकार योग की शुरुआत में यौगिक अंग परिभ्रमण में  सिर ,आँख ,हाथ,गर्दन आदि का उपयोग किया जाता है ।
   नृत्य की विविध मुद्राएँ आसान की विविध मुद्राओं से साम्य रखती हैं ।
   योग और नृत्य द्वारा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तंदुरुस्ती प्राप्त की जा सकती है ।
    हैप्पी डांस डे ।

Friday 18 April 2014

गपशप

सुबह का काम निपटा कर हम चारों सहेलियां अब शांति से बैठ कर चाय पी रहे है एकदम रिलैक्सड.......।
    सुना है सामने वाले घर में नये किराएदार आ गए है ।
   अच्छा... कौन है ?कहाँ से आए है ? बच्चे है या नहीं? अच्छा कैसी दिखती है ?अरे मैंने तो देखा ही नही ?
     अरे...साँस तो ले लो ।
      हाँ ,मगर मुझसे तो  रहा ही नही जाता ।
    चलो ठीक है वैसे भी मेरी तो आदत ही नहीं है किसी की पंचायत करने की  । मैं भली और मेरा काम भला  । चलो चलती हूँ ।
    उसके जाने के बाद-अरे देखो न ,कैसे दूसरों की पंचायत कर रही थी
हाँ ....उसकी तो आदत ही ऐसी है ।
   पर एक बात तो है नई पडौसन है बड़ी टिपटोप । लगता है उसका हसबैंड बड़ी कंपनी में काम करता है ।
  हाँ दो-दो तो गाडियां है ।
    चलो किसी बहाने मिलने चलते हैं ।
    अरे नही ।
      तभी माँ पूजा खत्म करके गाती हुई बाहर आई -मुझे कया काम दुनिया से .........
    चलो कल मिलते है ।

 

Tuesday 15 April 2014

पौधे

पौधे जो हमनें लगाए थे ,आँगन में अपने ,
  बन गए हैं आज वो वॄक्ष बड़े  ।
     पाला था बड़े जतन से उन्हें ,
    पानी, मिट्टी ,खाद सभी कुछ ,
     दिया समय -समय पर ।
     और शायद इसीलिये ये वृक्ष ,लदे है फलों से ,     झुके जा रहे विनम्रता से ,मानो कह रहे हो ,
   उतारने दो हमें कर्ज अपना ।
     काश ,इंसान भी ऐसा बन पाता ।

Friday 11 April 2014

-मन की आवाज़

क्या बात है आज बड़ी खुश नजर आ रही हो ?
  हाँ ,बात ही कुछ ऐसी है ।
   अच्छा ,हम भी तो सुनें क्या बात है ?
     अरे आज हमारे पडौस में से सुबह से ही जोर-जोर से लडने-झगडने और बच्चों के चिल्लाने की आवाजें आ रही है ।
    पर इसमें खुश होने की क्या बात है ?
    तुम भी ना --
    अरे ,तुम क्या जानों पिछले एक -दो महीने से हमारे पडौस के इस घर में शांति है ।न लडने-झगडने की आवाज़ और न ही बच्चों का शोरगुल । जैसे सब खामोश से हो गए हो ।सब कुछ अजीब सा ,शांत-शांत ।
    मुझे तो तभी लगने लगा था जरूर कोई बात है । सुना है  दोनो अलग होने की सोच रहे हैं । इसका असर बच्चों पर भी हो रहा है । वे तो मानो हँसना-खेलना भी भूल गए हैं ।
   और आज अचानक फिर से सुबह-सुबह वही लडने -झगडने की आवाजें, बच्चों का शोर सुनाई दिया तो लगा कि जैसे एक घर टूटने से बच गया  और इसीलिये मैं इतनी खुश हूँ समझी ।