Saturday 4 April 2015

समन्वय

केलेंडर बदल गया
     खूंटी वही है 
      रातें गुजरती हैं
      तारीखें बदलती हैं
      कभी सोचा है
      कि हम कहाँ हैं
     खूंटी की तरह वहीँ
       या फिर तारीखों की तरह
       आगे बढ़ रहे हैं  ।
     या फिर  पकड़े हैं
     अपनी लकीर की फकीरी ।
  समय के साथ चलना सीखो
       आगे बढ़ के जीना सीखो
करो समन्वय नई पीढ़ी के साथ
        चलों मिला कर हाथों से हाथ
      तभी तो होगी जीत तुम्हारी
       पाओगे ना कभी तुम हार
  पथ के कंटक फूल बनेगें
        राह बने सदा  गुलजार ।
       

    

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