कब से खड़ी
झरोखे से
बाट निहारूँ
कहाँ हो तुम
और ये चाँद निर्मोही
देखो मुझे देख
कैसे मुस्कुरा रहा है
जैसे चिढ़ा रहा है
कह रहा है
मैं तो रहता साथ
सदा चाँदनी के
मैं हूँ तो वो है
बने एक दूजे के लिए
मैं भी क्या कहूँ
कहाँ हो तुम ?
आँखे पथरा गई
राह तकते -तकते
पथराई सी
ना जाने कब
बन्द हुई
और फिर सपने में
तुम आये , बाहें फैलाये
और मैं खिंची सी चली गई
चलती ही गई
पा ही लिया तुम्हे
सपना ही सही
ख़ुशी दे गया
जब आँख खुली
खिड़की से चाँद
अभी भी मुस्कुरा रहा था .......
Sunday 31 January 2016
प्रतीक्षा
Saturday 23 January 2016
बसंत -बहार
देखो बसंत - बहार में
अवनि ने धरा रूप नया
बन गई हरा समन्दर
इठलाती , बलखाती
ओढ़ छतरी गगन की
झुलाती पल्लू बसन्ती
हँसती गुनगुनाती
पल्लू पर ओस बूँदों नें जैसे
टांक दिए हों हीरे मोती
हुई अलंकृत फूल सरसों से
है इसकी तो छटा निराली
कोयल गाती पंचम सुर में
फूल-फूल पर डोलें भँवरे
तितलियाँ भी सजी रंगों से
उड़ती -फिरती लगती प्यारी
प्रकृति ने जैसे खोल दिया हो
जादुई पिटारा बाँटने को रूप
हर फूल , कली को
नदी ,समंदर को
खेतों को खलियानों को
मन करता है
भूल सभी कुछ
नाचें , गाएं ख़ुशी मनाएं ।
Thursday 14 January 2016
आओ त्यौहार मनाएं
आओ आज सभी मिलकर
संक्रांति पर्व मनाये
चढ़ जाये सब
छत पर भैया
खूब पतंग उड़ाए
हो जाये पेच पर पेच
ढील पर ढील दे भाई
सब मिलकर फिर
बोले भैय्या - वो काटा ......।
तिल के लड्डू , चिक्की , गजक
बोर , गन्ने और जामफल
खूब मजे से खाएं ।
लेकिन देखो , सम्हल के भैया
कोई पक्षी डोर में फँसकर
कहीं उलझ न जाए
जीवन किसी निरीह प्राणी का
खतरे में न पड़ जाये ।
सपने....
सपने जो देखे थे
एक साथ हमने
पूरा करने की
होड़ में , साथ
धीरे -धीरे जैसे
छूटता सा गया
जिन्हें , पाने की
चाह में जीवन जैसे
रीत सा गया
आज ये , कल वो
कब होंगे पूरे ये
अब तो जैसे
बन गये हैं हम -तुम
एक नदी के दो किनारे
साथ तो चलते हैं
मगर कितनी दूर
और ये ,
कभी न ख़त्म होने वाले सपने
या कहो -इच्छाएँ
चलो अब बहुत हुआ ....
साथ मिलकर डुबकी लगाएं
आ जाये भँवर में
पकड़ हाथ एक -दूजे का
एक किनारे लग जाये ।
Friday 8 January 2016
फुटपाथी
सर्द ठिठुरती रात में
एक चादर भी
मयस्सर नहीं जिन्हें
कुछ चिथड़े से लपेटे हुए
देखा है कई बार इन्हें
सर्द हवा के झोंकों से
बचने की नाकाम कोशिश
करते हुए....
ना कोई ठौर ना ठिकाना
फुटपाथ हीं इनका बसेरा है
देखा है छोटे -छोटे बच्चों को
टूटे-फूटे खिलौनों से
खेलते हुए और
सिगनल पर
नए खिलौने बेचते हुए
सर्द हवा से बचने के लिए
जुगाड़ करते है
कुछ लकड़ी के टुकड़े
अलाव जलाने को
नींद आती है लेकिन
सो नहीं पाते
इस डर से कि
कहीं कोई तेजी से
आती हुई कार
कुचल न डाले उन्हें
इसलिए जागते है रात भर
उनके लिए तो ,उनकी ज़िन्दगी है
अनमोल ....
औरों के लिए हो ना हो
जी हाँ ....ये हैं फुटपाथी ।